आत्म संयम की साधना के लिए पवित्र दिन मौनी अमावस्या

हिंदू धर्म में माघ के महीने को बहुत पवित्र माना जाता है एवं इस मास के हर दिन को स्नान-दानादि के लिये बहुत ही पुण्यकारी माना गया है। शास्त्रों के अनुसार इस माह के मध्यकाल में पड़ने वाली मौनी अमावस्या को आत्मसंयम की साधना के लिए बहुत विशिष्ट माना गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन प्रजापति ब्रह्माजी ने मनु और शतरूपा को प्रकट करके सृष्टि की रचना का आरंभ किया था। इसी कारण यह तिथि सृष्टि की रचना के शुभारंभ के रूप में भी जानी जाती है। इस दिन मौन धारण करके स्नान, दान, तप एवं शुभ आचरण करने से व्रती को मुनिपद की प्राप्ति होती है।


 

गंगा स्नान का है महत्व
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन सभी पवित्र नदियों और पतितपाविनी माँ गंगा का जल अमृत के समान हो जाता है। इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल मिलता है। मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए। यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर सूर्योदय से पूर्व स्नान आदि करना चाहिए,गंगा जल ग्रहण करे। स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें,इससे चित्त की शुद्धि होती है एवंआत्मा का परमात्मा से मिलन होता है। इस तिथि को मौन एवं संयम की साधना,स्वर्ग एवं मोक्ष देने वाली मानी गई है।यदि किसी व्यक्ति के लिए मौन रखना संभव नहीं हो तो वह अपने विचारों को शुद्ध रखें मन में किसी तरह की कुटिलता नहीं आने दें।

पुराण ऐसा कहते हैं
कांचीपुर में एक बहुत सुशील गुणवती नाम की कन्या थी।विवाह योग्य होने पर उसके पिता ने जब ज्योतिषी को उसकी कुंडली दिखाई तो उन्होंने कन्या की कुंडली में वैधव्य दोष बताया।उपाय के अनुसार गुणवती अपने भाई के साथ सिंहल द्वीप पर रहने वाली सोमा धोबिन से आशीर्वाद लेने चल दी।दोनों भाई-बहन एक वृक्ष के नीचे बैठकर सागर के मध्य द्वीप पर पहुंचने की युक्ति ढूंढ़ने लगे।वृक्ष के ऊपर घौसले में गिद्ध के बच्चे रहते थे ।शाम को जब गिद्ध परिवार घौंसले में लौटा तो बच्चों ने उनको दोनों भाई-बहन के बारे में बताया।उनके वहां आने कारण पूछकर उस गिद्ध ने दोनों को अपनी पीठ पर बिठाकर अगले दिन सिंहल द्वीप पंहुचा दिया।वहां पहुंचकर गुणवती ने सोमा की सेवा कर उसे प्रसन्न कर लिया।जब सोमा को गुणवती के वैधव्य दोष का पता लगा तो उसने अपना सिन्दूर दान कर उसे अखंड सुहागिन होने का वरदान दिया।सोमा के पुण्यफलों से गुणवती का विवाह हो गया वह शुभ तिथि मौनी अमावस्या ही थी।निष्काम भाव से सेवा का फल मधुर होता है,यही मौनी अमावस्या का उद्देश्य है।